Tuesday, May 5, 2009

"मैं"







"मैं "

कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
लफ्जों के हेर फेर ने समझा नहीं मुझे....

कच्ची थी सोंधी ख़ाक में मैं बोलता रहा ,
चाकों के एतबार ने चूप्का किया मुझे...

लौहएमकान का का राज़ था क्यों फाश हो गया ,
कुत्बों के इन्तखाब ने रुसवा किया मुझे ... ..

खारे -चमन था लेकिन चुप चाप जी गया ,
कलियों की बेकली ने तड़पा दिया मुझे ....

35 comments:

Anonymous said...

Superbly Crafted!!

In this particular poem, you sounds like a perfect Urdu Poetesssss!!

Great Going Seema, You Have Been Keeping It UP...

Congrates!

Archeav

Anonymous said...

SEEMA KAMAAL KARTI HAI
KAAM VOH BEMISAL KARTEE HAI

Anonymous said...

Is this the fate of "I" used in the poem,
what a nice choice of words.....

कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,

लफ्जों के हेर फेर ने समझा नहीं मुझे....
Extra five marks for matching chtrankan
withlots of regards---sure

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
लफ्जों के हेर फेर ने समझा नहीं मुझे....
kya baat hai Seema ji.Jitni bhi tariiff karein - kam hai.
Baar baar padhne ko man karta hai.

Wish you all the great heights and success you rightly deserve...

Mukesh Garg said...

seema ji ur great apki har poeam ko no. 1 main hi rakhta hu or chhata hu ki aap uhi likhti rahee or no. 1 par kayam rahee.

Anonymous said...

kin ounchaaiyan ko choo liya hai tumne aaj
"chakon kay aitbaar nay chupka kiya mujhey"-----
ek achoota khayal hai

u r great.......Seema

Anonymous said...

going on your job




op

ताऊ रामपुरिया said...

खारे -चमन था लेकिन चुप चाप जी गया ,
कलियों की बेकली ने तड़पा दिया मुझे ....

बहुत ही नायाब रचना. शुभकामनाएं.

रामराम.

डॉ. मनोज मिश्र said...

वाकई एक सुंदर रचना .

Ashish Khandelwal said...

अच्छी प्रस्तुति..

रंजन said...

bahut khub..

Birds Watching Group said...

wo mmmaraaaaa..............

mehek said...

waah bahut khub seemaji.

नीरज गोस्वामी said...

एक बार फिर लाजवाब....रचना.
नीरज

डॉ .अनुराग said...

कच्ची थी सोंधी ख़ाक में मैं बोलता रहा ,
चाकों के एतबार ने चूप्का किया मुझे...

bahut khoob!!!!!!

दिगम्बर नासवा said...

कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
सचमुच.........कुछ कहने के लिए इंसान
कलम और शब्द ही तलाशता रहता है...........

खारे -चमन था लेकिन चुप चाप जी गया ,
कलियों की बेकली ने तड़पा दिया मुझे ....

कलियों के माध्यम से दुनिया के दर्द को बयान किया है आपने.............

शाश्वत अभियक्ति है

P.N. Subramanian said...

बहुत ही जोरदार रचना.हम भी बोल देते हैं "तुसी ग्रेट हो"

Udan Tashtari said...

खारे -चमन था लेकिन चुप चाप जी गया ,
कलियों की बेकली ने तड़पा दिया मुझे ....


--बहुत उम्दा..हमेशा की तरह!! बधाई.

Mumukshh Ki Rachanain said...

कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
लफ्जों के हेर फेर ने समझा नहीं मुझे....

सुन्दर प्रस्तुति की एक और कड़ी..........

आशा है मेरे लफ्ज़ों के हेर-फेर को आप तो समझेंगी ही..............

बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त

Alpana Verma said...

Sundar kavita.

रविकांत पाण्डेय said...

कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
लफ्जों के हेर फेर ने समझा नहीं मुझे

बहुत बढ़िया।

प्रकाश गोविंद said...

BEHTAREEN GHAZAL

लौहएमकान का का राज़ था क्यों फाश हो गया ,
कुत्बों के इन्तखाब ने रुसवा किया मुझे

BAHUT KHOOB

Kavi Kulwant said...

khoobsurat

admin said...

गम्भीर बातों को सहज रूप में कह देना आपकी विशेषता है। और इस नजरिए से यह एक लाजवाब कविता है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary- TSALIIM / SBAI }

kumar Dheeraj said...

खारे -चमन था लेकिन चुप चाप जी गया ,
कलियों की बेकली ने तड़पा दिया मुझे ....
बेहतरीन नज्म आपने पेश किया है सीमीजी । शुक्रिया

ललितमोहन त्रिवेदी said...

कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
लफ्जों के हेर फेर ने समझा नहीं मुझे....
बहुत अच्छा लिखती हैं आप सीमा जी ! मन की भूल भुलैंयां को सहज ढंग से अल्फाज़ में ढाला है ! बहुत खूब !

RAJNISH PARIHAR said...

लोगों ने बहुत कुछ कह दिया है..अब और क्या कहूँ...?अति सुन्दर...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत ही नायाब रचना|बहुत खूब !

admin said...

बार बार तारीफ करने का जी चाहता है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

अनिल कान्त said...

ultimate ...superb

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Divya Narmada said...

शब्द-चित्र कम चित्र अधिक क्यों?

अमिताभ श्रीवास्तव said...

ab aapke aashirvaad mujhe nahi milte/ kher..

aapki kalam man ke dhago me bandhi jo shbd ukerti he aour syaahi unke artho ko paribhashit karta he, vakai..lazavaab he/
chitra aour unse bandhe shbd..//
man ko bhaa gaye/

Science Bloggers Association said...

कभी कभी आपकी कल्‍पना लाजवाब कर देती है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

निर्मला कपिला said...

निशब्द हू बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति आभार्

Randhir Singh Suman said...

good