"मैं "
कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
लफ्जों के हेर फेर ने समझा नहीं मुझे....
कच्ची थी सोंधी ख़ाक में मैं बोलता रहा ,
चाकों के एतबार ने चूप्का किया मुझे...
लौहएमकान का का राज़ था क्यों फाश हो गया ,
कुत्बों के इन्तखाब ने रुसवा किया मुझे ... ..
खारे -चमन था लेकिन चुप चाप जी गया ,
कलियों की बेकली ने तड़पा दिया मुझे ....
35 comments:
Superbly Crafted!!
In this particular poem, you sounds like a perfect Urdu Poetesssss!!
Great Going Seema, You Have Been Keeping It UP...
Congrates!
Archeav
SEEMA KAMAAL KARTI HAI
KAAM VOH BEMISAL KARTEE HAI
Is this the fate of "I" used in the poem,
what a nice choice of words.....
कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
लफ्जों के हेर फेर ने समझा नहीं मुझे....
Extra five marks for matching chtrankan
withlots of regards---sure
कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
लफ्जों के हेर फेर ने समझा नहीं मुझे....
kya baat hai Seema ji.Jitni bhi tariiff karein - kam hai.
Baar baar padhne ko man karta hai.
Wish you all the great heights and success you rightly deserve...
seema ji ur great apki har poeam ko no. 1 main hi rakhta hu or chhata hu ki aap uhi likhti rahee or no. 1 par kayam rahee.
kin ounchaaiyan ko choo liya hai tumne aaj
"chakon kay aitbaar nay chupka kiya mujhey"-----
ek achoota khayal hai
u r great.......Seema
going on your job
op
खारे -चमन था लेकिन चुप चाप जी गया ,
कलियों की बेकली ने तड़पा दिया मुझे ....
बहुत ही नायाब रचना. शुभकामनाएं.
रामराम.
वाकई एक सुंदर रचना .
अच्छी प्रस्तुति..
bahut khub..
wo mmmaraaaaa..............
waah bahut khub seemaji.
एक बार फिर लाजवाब....रचना.
नीरज
कच्ची थी सोंधी ख़ाक में मैं बोलता रहा ,
चाकों के एतबार ने चूप्का किया मुझे...
bahut khoob!!!!!!
कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
सचमुच.........कुछ कहने के लिए इंसान
कलम और शब्द ही तलाशता रहता है...........
खारे -चमन था लेकिन चुप चाप जी गया ,
कलियों की बेकली ने तड़पा दिया मुझे ....
कलियों के माध्यम से दुनिया के दर्द को बयान किया है आपने.............
शाश्वत अभियक्ति है
बहुत ही जोरदार रचना.हम भी बोल देते हैं "तुसी ग्रेट हो"
खारे -चमन था लेकिन चुप चाप जी गया ,
कलियों की बेकली ने तड़पा दिया मुझे ....
--बहुत उम्दा..हमेशा की तरह!! बधाई.
कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
लफ्जों के हेर फेर ने समझा नहीं मुझे....
सुन्दर प्रस्तुति की एक और कड़ी..........
आशा है मेरे लफ्ज़ों के हेर-फेर को आप तो समझेंगी ही..............
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
Sundar kavita.
कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
लफ्जों के हेर फेर ने समझा नहीं मुझे
बहुत बढ़िया।
BEHTAREEN GHAZAL
लौहएमकान का का राज़ था क्यों फाश हो गया ,
कुत्बों के इन्तखाब ने रुसवा किया मुझे
BAHUT KHOOB
khoobsurat
गम्भीर बातों को सहज रूप में कह देना आपकी विशेषता है। और इस नजरिए से यह एक लाजवाब कविता है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary- TSALIIM / SBAI }
खारे -चमन था लेकिन चुप चाप जी गया ,
कलियों की बेकली ने तड़पा दिया मुझे ....
बेहतरीन नज्म आपने पेश किया है सीमीजी । शुक्रिया
कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
लफ्जों के हेर फेर ने समझा नहीं मुझे....
बहुत अच्छा लिखती हैं आप सीमा जी ! मन की भूल भुलैंयां को सहज ढंग से अल्फाज़ में ढाला है ! बहुत खूब !
लोगों ने बहुत कुछ कह दिया है..अब और क्या कहूँ...?अति सुन्दर...
बहुत ही नायाब रचना|बहुत खूब !
बार बार तारीफ करने का जी चाहता है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ultimate ...superb
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
शब्द-चित्र कम चित्र अधिक क्यों?
ab aapke aashirvaad mujhe nahi milte/ kher..
aapki kalam man ke dhago me bandhi jo shbd ukerti he aour syaahi unke artho ko paribhashit karta he, vakai..lazavaab he/
chitra aour unse bandhe shbd..//
man ko bhaa gaye/
कभी कभी आपकी कल्पना लाजवाब कर देती है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
निशब्द हू बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति आभार्
good
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