"आज"
जैसे कुछ दिल बदल गया हो आज,
यार ख़ुद से बहल गया हो आज,
यार ख़ुद से बहल गया हो आज,
तुम अगर सुन नही रहे हो बात,
मेरा दिल क्यूँ मचल गया हो आज ?
क्या पता खत लिख नही पाता,
या नई चाल चल गया हो आज,
क्यूँ ये मौसम भी खुशगवार नही,
हवा का रुख बदल गया हो आज !
एक नशा था उतर नही पाता,
तेरे रुख से संभल गया हो आज,
क्यूँ ये मुझ से ही हो नहीं पाता,
कोई दिल से निकल गया हो आज !
तुम को चाहा है तुम से प्यार किया,
प्यार सदियों का मिल गया हो आज,
20 comments:
बहुत सुंदर गजल है. एक-एक शेर बहुत कुछ कहता है.
"aaj"
bahut achche shabd...
bahut achche sher....
dard fijaaon me
mahsoos na kiya tha kabhi
vo tamannayen
vo bekaraari/bekasi
kahne ki lajjat men
aitbaar kar naa saki
magar vo din yakinan nahi
aaj
सीमाजी वो कमेंट करने के लिए क्या कहते हैं लाजवाव
सीमाजी वो कमेंट करने के लिए क्या कहते हैं लाजवाव
काफ़ी कुछ बदला है आज
बारिश से कीचड टखनो तक,
गले तक पानी भरा आज
कल तक थी जो रीती गगरिया
भरी हुई है कितनी आज
पत्तो से गिरती ये बूंदे
सुना रही रिमझिम का साज
डूब ना जाये फ़िरते व्याकुल
कल बूंद बूंद को थे मोहताज
" wah wah, aap aaye humaree kismet hai..... Arun jee hum bhee khen kee kyun humeye gazal kuch adhuree adhuree see lg rhee thee, vo kya hai naa apne abhee tk isko trasha nahee thaa, dair aaye, durust aaye"
"shukriya"
Regards
Thanks to all readers and for their valuable comments.
Regards
वाह.
सुंदर!
अति सुंदर!
बेहतरीन....
बहुत ही उम्दा... रचना.
शब्दों का सुंदर जादू बिखेरा आपने.
भावुक कर देने वाली रचना है। बहुत सुन्दर । बधाई स्वीकारें।
very nice..
क्रंदन (एक अधूरा गीत)
करुण क्रंदन से आह संपूर्ण विश्व है रोता,
जग में भरी व्यथाओं की ज्वाला में है जलता,
तम की गहन गुफा में, निस्तब्ध गगन के नीचे,
घुट-घुट कर सिसक-सिसक कर जीवन क्योंहै रोता !
धूमिल होती आशाएं, परिचय बना रुदन है,
निष्ठुर निर्दयी नियति म्लान हुआ जीवन है,
स्मृतियां बहतीं रहीं अश्रु बन अविरल जलधारा,
द्रवित होता हृदय नही, पाषाण बना नलिन है ।
हिम बन माहुर जमा रक्त, उर में नही तपन है,
प्रणय डोर जब टूट चली, रोता कहीं मदन है,
निश्वास छोड़ता सागर, नीरव व्याकुल लहरें,
दर्द से व्यथित वेदना, पीड़ा सहती जलन है ।
काल बना निर्मोही, सजा रहा मुस्कान कुटिल,
अट्टहास करती तृष्णा, बन गया मानव जटिल,
प्रलय घटा घनघोर, अवसाद विक्षुब्ध खड़ा है,
उलझा मौन रहस्य, अभिशापित लहरें फेनिल ।
कवि कुलवंत सिंह
सुंदर गजल.बहुत उम्दा... बधाई !!
बहुत सुन्दर गज़ल है बधाई
तुम को चाहा है तुम से प्यार किया,
प्यार सदियों का मिल गया हो आज,
मालिकुल्मौत आए गर दानी,
मौत का वक्त टल गया हो आज !
bahut hi khoobsoorat lines hain.....
maut ka waqt tal gaya ho aaj..... is line ne mann ke anadr tak jagah bana li.......
khoobsoorat.....
aapki rachnao ka kaayal hu me/ aour yah ese hi nahi he, shbdo ka jaadoo jis tarike se aap bikherti he artho me vo bahut khoobsoorat ho jaate he/
bahut kuchh seekh leta hu aapse, aapki rachnao se/
बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर गजल पढने को मिली, अच्छा लगा।
दुर्गापूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
क्या पता खत लिख नही पाता,
या नई चाल चल गया हो आज,
वाह सुन्दर पंक्तियों के साथ एक बार पुनः भावनाओ को छूने वाली गजल.....
chha gayaa jaadu
dil bhi hua bekaabu
likhne ko chalaa khat magar
dil ne kahaa vo hai kahan juda
kya pyaar kya bekasi milan ki
rahte ho dil hi men kahin
seemaa ji laajawaab jajbaat likhe shukriyaa
इस रचना मे खत की बात अच्छी लगी ।
मालिकुल्मौत आए गर दानी,
मौत का वक्त टल गया हो आज !
सीमाजी बहुत बढिया ।
काफी रंगीन, काफी गमगीन
काले परदे पर बिखरा सा
जैसे रात के अंधेंरों में हुआ
कोई खून
चमक रहा है हर शब्द
वही है वही है वही है
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