


" मैं दूंढ लाता हूँ"
अगर उस पार हो तुम " मैं अभी कश्ती से आता हूँ .....
जहाँ हो तुम मुझे आवाज़ दो " मैं दूंढ लाता हूँ"
किसी बस्ती की गलियों में किसी सहरा के आँगन में ...
तुम्हारी खुशबुएँ फैली जहाँ भी हों मैं जाता हूँ
तुम्हारे प्यार की परछाइयों में रुक के जो ठहरे ............
सफर मैं जिंदिगी का ऐसे ख्वाबों से सजाता हूँ
तुम्हारी आरजू ने दर बदर भटका दिया मुझको ............
तुम्हारी जुस्तुजू से अपनी दुनिया को बसाता हूँ
कभी दरया के साहिल पे कभी मोजों की मंजिल पे........
तुम्हें मैं ढूँडने हर हर जगह अपने को पाता हूँ
हवा के दोष पर हो कि पानी की रवानी पे .............
तुम्हारी याद में मैं अपनी हस्ती को भुलाता हूँ
मुझे अब यूँ ने तड़पाओ चली आओ चली आओ ......
चली आओ चली आओ चली आओ चली आओ
अगर उस पार हो तुम " मैं अभी कश्ती से आता हूँ .....
जहाँ हो तुम मुझे आवाज़ दो " मैं दूंढ लाता हूँ"...........
25 comments:
सफर मैं जिंदिगी का ऐसे ख्वाबों से सजाता हूँ
तुम्हारी आरजू ने दर बदर भटका दिया मुझको ............
तुम्हारी जुस्तुजू से अपनी दुनिया को बसाता हूँ
bahut khub likha hai aapne
बहुत खूब
Truely Excellent!!!
While reading this one, I felt roaming around each and every bit of this world..
You make me LIVE the Lines YOU write, Seema!!
I truely live Your lines when I read them!!!
Have no words more than this!!!
Abb tum tumhari tareef bhi nahi hoti, tum meri tareefoon se pare hoti ja rahi ho
तुम्हारी जुस्तुजू से अपनी दुनिया को बसाता हूँ
कभी दरया के साहिल पे कभी मोजों की मंजिल पे........
तुम्हें मैं ढूँडने हर हर जगह अपने को पाता हूँ
हवा के दोष पर हो कि पानी की रवानी पे .............
तुम्हारी याद में मैं अपनी हस्ती को भुलाता हूँ
bahut khoob.....
सीमा जी
शब्द संयोजन के साथ बोलते चित्र लगाने की कला आप से सीखनी पड़ेगी...पूरा माहौल रोमांस से भर दिया है आपने...बहुत भाव पूर्ण रचना दी है...मुझे अपनी एक ग़ज़ल के कुछ शेर याद आ गए जो इसी जमीन से मिलते जुलते हैं:
तुम्हें जब याद करता हूँ, तो अक्सर गुनगुनाता हूँ
हमारे बीच की सब दूरियों को यूँ मिटाता हूँ
मुझे मालूम है तुम नहीं आवाज पहुँचेगी
मगर तन्हाईयों में मैं तुम्हें फ़िर भी बुलाता हूँ
घटायें धूप बारिश फूल तितली चाँदनी नीरज
इन्हीं में दिल करे जब भी तुझे मैं देख आता हूँ.
नीरज
कभी दरया के साहिल पे कभी मोजों की मंजिल पे........
तुम्हें मैं ढूँडने हर हर जगह अपने को पाता हूँ
बहुत ही सुंदर पक्तिंयां हैं और अच्छी अच्छी पंक्तियों के मिश्रण से बनी एक अति सुंदर रचना बधाई हो सीमा जी
पटाखा
Shabdo ko ek chehra de diya aapne........bahut khoob.... marvelous ....
seema ji
एक कसक जो दिल में उटती है वही कलम से होती हुई
कागज पर उतार आती है
ब्लाग का सहारा लेते हुए वही हजारों तक पहुंच जाता है
आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी
और हमें अच्छी -अच्छी कविताएं, नगमे और गीत पढ़ने को मिलेंगे
with regard
mohan bahuguna
अच्छी कविता
aapakaa blog bahut sundar lagaa...colourfull
"और कहने को इसमें क्या रह गया...."
इस रचना के सन्दर्भ में सभी साहित्यप्रेमियों ने अपने जो जो कमेन्ट दिए वो बहुत सही और उपयुक्त है और मै येही सोच रहा था की हर बार की तरह मै सबसे बाद में ही आ पाता हूँ....और चुक जाता हूँ खैर कविता कभी बासी नहीं होती, और तारीफ कभी भी की जा सकती है . सुन्दर रचना के लिए रचनाकार को बधाइयाँ
बेहद खूबसूरत...बहुत उम्दा...वाह!
तुम्हारे प्यार की परछाइयों में रुक के जो ठहरे ............
सफर मैं जिंदिगी का ऐसे ख्वाबों से सजाता हूँ
कविता अच्छी लगी
बहुत खूब
लिखती रहिये
bahut hi accha likha hai,
अगर उस पार हो तुम " मैं अभी कश्ती से आता हूँ .....
जहाँ हो तुम मुझे आवाज़ दो " मैं दूंढ लाता हूँ"..........
bahut khub seema ji
अगर उस पार हो तुम " मैं अभी कश्ती से आता हूँ .....
जहाँ हो तुम मुझे आवाज़ दो " मैं दूंढ लाता हूँ".........
बहुत खूब सीमाजी, कौनसा शेर चुनूं कौन सा छोडूं समझ नही आ रहा।
तुम्हारे प्यार की परछाइयों में रुक के जो ठहरे ............
सफर मैं जिंदिगी का ऐसे ख्वाबों से सजाता हूँ
तुम्हारी आरजू ने दर बदर भटका दिया मुझको ............
तुम्हारी जुस्तुजू से अपनी दुनिया को बसाता हूँ
कभी दरया के साहिल पे कभी मोजों की मंजिल पे........
तुम्हें मैं ढूँडने हर हर जगह अपने को पाता हूँ
हवा के दोष पर हो कि पानी की रवानी पे .............
तुम्हारी याद में मैं अपनी हस्ती को भुलाता हूँ
मुझे अब यूँ ने तड़पाओ चली आओ चली आओ ......
चली आओ चली आओ चली आओ चली आओ
अगर उस पार हो तुम " मैं अभी कश्ती से आता हूँ .....
जहाँ हो तुम मुझे आवाज़ दो " मैं दूंढ लाता हूँ"...........
bahut hi sunder kavita...... dil ko chhoo gayi yeh ........ deri se aane ke liye maafi chahta hoon.... aapne is kavita mein feelings ko...bahut hi khoobsoorti se ukera hai..... nishabd hoon....
pz meri nayi kavita dekhiye.... www.lekhnee.blogspot.com par
Regards.........
tahjeeb hai meri
tarbiyat bhi
aadat bhi to
jo hasaraten
kwaab aur khayaal dhoondh laata hun
haan main hun hi aisa
jo fir fir kuchh nayaa dhoondh laataa hun
रूमानी जज्बों से लबरेज लाजवाब कविता।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सफर मैं जिंदिगी का ऐसे ख्वाबों से सजाता हूँ
तुम्हारी आरजू ने दर बदर भटका दिया मुझको ............
तुम्हारी जुस्तुजू से अपनी दुनिया को बसाता हूँ
बहुत खूबसूरत। रचना भी रचयिता की तरह खूबसूरत हो तो पढने का मज़ा भी दोगुना हो जाता है। शुभकामनायें
भावों को इतनी सुंदरता से शब्दों में पिरोया है
सुंदर रचना....
SANJAY KUMAR
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बहुत दमदार रचनाएं हैं आपकी सीमा जी। ब्लाग भी बहुत ही खुबसूरत है। आपकी कल्पनाशीलता और रचनाधर्मिता को सलाम।
तुम्हारे प्यार की परछाइयों में रुक के जो ठहरे ............
सफर मैं जिंदिगी का ऐसे ख्वाबों से सजाता हूँ
तुम्हारी आरजू ने दर बदर भटका दिया मुझको ............
तुम्हारी जुस्तुजू से अपनी दुनिया को बसाता हूँ
bahut bahut sunder
man gunguna utha
Bahut sundar!
Bahut Sundar!
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