Tuesday, July 14, 2009

"तुम्हें पा रहा हूँ"










"तुम्हें पा रहा हूँ"

तुम्हें खो रहा हूँ तुम्हें पा रहा हूँ,
लगातार ख़ुद को मैं समझा रहा हूँ....

ना जाने अचानक कहाँ मिल गयीं तुम,
मैं दिन रात तुमको हे दोहरा रहा हूँ........

शमा बन के तुम सामने जल रही हो,
मैं परवाना हूँ और जला जा रहा हूँ ....

तुम्हारी जुदाई का ग़म पी रहा हूँ,
युगों से मैं यूँ ही चला जा रहा हूँ...

अभी तो भटकती ही राहों में उलझा,
नहीं जानता मैं कहाँ जा रहा हूँ....

नज़र में मेरे बस तुम्हारा है चेहरा,
नज़र से नज़र में समां जा रहा हूँ......

बेकली बढ़ गयी है सुकून खो गया है,
तुझे याद कर मैं तड़प जा रहा हूँ..........

कहाँ हो छुपी अब तो आ जाओ ना तुम,
मैं आवाज़ देता चला जा रह हूँ ........




34 comments:

Anonymous said...

"yeh kah rahi hai tumhein choo ke aaney waali hawaa,udaas main hi naheen bekaraar too bhi hai"

meri sadaa mein koyee intezaar pinhaa hai
main ro rahaa hoon aur ashkbaar too bhee hai

wohee to ho jisay main dhoondta tha sadiyon say
tera khayal bhi sabr-o-qaraar too bhee hai

"main awaaz deta chalaa ja raha hoon"

............aur kya likhoon ...kitnee tadap hai apki kavita mein..........
'chakor'

अभिन्न said...

bahut khoob -bahoot khoob,maza aa gaya hai mujhe to pad kar ..lag raha hai jaise koi sundar sa zharna bah raha hai shabd gir rahe hai arth nikal rahe hai,kitna suhana manzar hai jo aankhe dekhne lag jaati hai,,,aap me wo xamta hai jo banjar zameen par bhi shabd ganga utar lati hai,,,bhav vibhor ho gaya hoon ......bas ye zharna you hi zhrata rahe
payase ka dil bharta rahe
asar safa ho jaye iska
dukh hriday ke harta rahe
ek shabd hai marham iska
ghav gamon ke bharta rahe
noor ilahi roshan karta
andheron ka ji darta rahe

"sure"

Anonymous said...

yaar ye abhinn saaheb bhi khoob likhtay hain...........shabd ganga;shabd hai marham;noor ilahi........
"abhinn saahab ko mera salaam
raasta ban gaya hai tera kalaam"

.............shubh chintak

Anonymous said...
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अभिन्न said...

Shubh Chintak ji aap dwara ki gai taareef bahut achchhi lagi, anekanek dhanyavad aur slaam.Zanab aap bhi likhta hai to zaroor padna chahenge. sure

Anonymous said...

Seema,

Wow...This time You Rocks :).

Really fine dear

seema gupta said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

ना जाने अचानक कहाँ मिल गयीं तुम,
मैं दिन रात तुमको हे दोहरा रहा हूँ........

शमा बन के तुम सामने जल रही हो,
मैं परवाना हूँ और जला जा रहा हूँ ....
kya baat hai bahut khub
aap ki lekhni to paripakva hoti ja rahi hain
likhte rahiye
shubhashish pandey

Anonymous said...

शमा बन के तुम सामने जल रही हो,
मैं परवाना हूँ और जला जा रहा हूँ ....

नज़र में मेरे बस तुम्हारा है चेहरा,
नज़र से नज़र में समां जा रहा हूँ......


In 4 lines ne to mano, dil ko chho liya he
Amazingly inter-weaven words, and such a mesmerizing outcome (as a poem)
Truly relished with this one, tumhari images include kerne ki adda din prati din behtar hoti ja rahi he..

"arceav"

36solutions said...

बहुत सुन्दर भावों और शव्दों की बानगी ।

शुक्रिया ।

Anonymous said...

Behad khoobsoorat ghazal . har she'r lazawaab hai . khaaskar :



ना जाने अचानक कहाँ मिल गयीं तुम,

मैं दिन रात तुमको हे दोहरा रहा हूँ........

शमा बन के तुम सामने जल रही हो,
मैं परवाना हूँ और जला जा रहा हूँ ....

Wah ! Wah ! Wah !



Pataa nahiin kyun mujhe aapki shayari mein ajeeb sii maasoomiyat dikhayee detii hai.
aapko merii taraf se baar baar shubhkaamnayein aur 'good luck'
P K Kush 'tanha'

Mukesh Garg said...

bahut kohbsurat, seema ji wesse to apki puri sayeri hi kamal hai but ye line to kya kahee
तुम्हें खो रहा हूँ तुम्हें पा रहा हूँ,
लगातार ख़ुद को मैं समझा रहा हूँ...
too good

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर और भावप्रवण रचना.शुभकामनाएं.

रामराम.

दिगम्बर नासवा said...

बहूत ही खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है आज तो आपने............ आपकी कविताएँ तो दिल में तूफान मचाती ही हैं....... ये ग़ज़ल का अंदाज़ आज पहली बार देखा है आपका............ बहूत ही लाजवाब शेर हैं सब के सब......किसी की यादों को ढूँढती, समय को कुरेदती

दिगम्बर नासवा said...

बहूत ही खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है आज तो आपने............ आपकी कविताएँ तो दिल में तूफान मचाती ही हैं....... ये ग़ज़ल का अंदाज़ आज पहली बार देखा है आपका............ बहूत ही लाजवाब शेर हैं सब के सब......किसी की यादों को ढूँढती, समय को कुरेदती

मथुरा कलौनी said...

बहुत अच्‍छी आभिव्‍यक्ति है। शुभकामनाऍं।


मथुरा कलौनी

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर लगी आप की यह गजल.
धन्यवाद

Alpana Verma said...

अभी तो भटकती ही राहों में उलझा,
नहीं जानता मैं कहाँ जा रहा हूँ...'
खूब!
आप की इस ग़ज़ल का हर शेर दिल की उलझनों को बता रहा है ...
भावों को बहुत ही खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है.

admin said...

Gahree anubhutiyon ka sundar ankan.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Mumukshh Ki Rachanain said...

हकीकत की लाजवाब शब्दों में सच बयानी बेहद प्रभावित कर गई.
प्रयास प्रभावशाली रहा.

बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

तुम्हें खो रहा हूँ तुम्हें पा रहा हूँ,
लगातार ख़ुद को मैं समझा रहा हूँ....

Behatareen ghazal peish karne ke liye shukriya...mubarkbaad qubool farayein...

लाल और बवाल (जुगलबन्दी) said...

आदरणीय सीमाजी कृपया आप इतना बेहतर लिखने से बाज़ आएँ वरना आपको नज़र लग जाएगी।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

जवाब नहीं भई आपकी इस ग़ज़ल का....आज आपके हाथ से लिखा कुछ अलग-सा पढ़कर मैं भी बड़ा अलग-सा सुकून पा रहा हूँ....!!

Anonymous said...

bhavnaayen wah.....

Ashutosh said...

बहुत सुन्दर

हिन्दीकुंज

Shishir Shah said...

puari ghazal badhiya hain...par pehle sher ki saadgi aur sidhi baat ne dil jeet liya...

संजीव गौतम said...

नज़र में मेरे बस तुम्हारा है चेहरा,
नज़र से नज़र में समां जा रहा हूँ......
सुन्दर ग़ज़ल

~PakKaramu~ said...

Pak Karamu reading your blog

Anonymous said...

भावनाओं का उबाल।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।

Science Bloggers Association said...

Laajawaab.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

तुम्हें खो रहा हूँ तुम्हें पा रहा हूँ,
लगातार ख़ुद को मैं समझा रहा हूँ....
bahut hi shaandaar shuruaat



कहाँ हो छुपी अब तो आ जाओ ना तुम,
मैं आवाज़ देता चला जा रह हूँ ........

aur ant ki khoobsoorti ka jawab nahi......

निर्मला कपिला said...

शमा बन के तुम सामने जल रही हो,
मैं परवाना हूँ और जला जा रहा हूँ ....

तुम्हारी जुदाई का ग़म पी रहा हूँ,
युगों से मैं यूँ ही चला जा रहा हूँ...

सीमाजी लाजवाब गज़ल के लिये बधाई

ताऊ रामपुरिया said...

इष्टमित्रों और परिवार सहित आपको, दशहरे की घणी रामराम.

रामराम.

प्रकाश पाखी said...

शमा बन के तुम सामने जल रही हो,
मैं परवाना हूँ और जला जा रहा हूँ ....


तुम्हारी जुदाई का ग़म पी रहा हूँ,
युगों से मैं यूँ ही चला जा रहा हूँ...

पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ,आपकी लेखनी प्रभावित करती है.पूरी गजल अभिभूत कर देने वाली है...दो शेर विशेष रूप से पसंद आये .बधाई और आभार!