My Ghazal published in BAZM E SAHARA MAGAZINE in AUGUST 2012 EDITION
http://bazmesahara.com/ 01082012/Home.aspx (PAGE-64)
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1) रौशनी से भला जुगनू ये निकलता क्यों है
अक्स इसका मेरी आँखों में बिखरता क्यों है
गुफ्तुगू में जो तेरा ज़िक्र कभी आ जाए
दर्द तूफ़ान की तरह दिल में मचलता क्यों है
रात भर चाँद ने चूमी है तेरी पेशानी
उसको अफ़सोस है सूरज ये निकलता क्यों है
किस लिए फैला है हसरत का धुवां चारों तरफ
दिल से एक आह का शोला ये निकलता क्यों है
सोचती रहती हूँ फुर्सत में यही मैं "सीमा "
काम जो होना है आखिर वोही टलता क्यों है
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2)
तेरी यादों का हों मेला ,शब् -ए -तन्हाई हो
मैं उसे जानती हूँ सिर्फ उसे जानती हूँ
क्या ज़ुरूरी है ज़माने से शनासाई हो
इतनी शिद्दत से कोई याद भी आया ना करे
होश में आऊं तो दुनिया ही तमाशाई हो
मेरी आँखों में कई ज़ख्म हैं महरूमी के
मेरे टूटे हुए ख़्वाबों की मसीहाई हो
वो किसी और का है मुझ से बिछड कर “सीमा “
कोई ऐसा भी ज़माने में न हरजाई हो
2 comments:
bahut kuhb , seema ji badhiyo or suhbkanao k siwa or kuch nhi likh pa raha hu kyuki kuch nhi hai mere pass in sabdo k alawa
regards
सोचती रहती हूँ फुर्सत में यही मैं "सीमा "
काम जो होना है आखिर वोही टलता क्यों है
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यही सवाल है जोबार बार परेशान करता है ।
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