Wednesday, November 19, 2008

भरोसे से

"भरोसे से"

वक्त के जंगल के ये झंखाड़,
और वो झाड़ियाँ
साफ़ दिखने में ख़लल डालें,

जो बनकर गुत्थियाँ
चंद क़दमों पर नज़र आएँगे,

फिर से हम ज़रूर
बस भरोसे से हटाना है,
तुम्हें बेज़ारियाँ.........

(बेज़ारियाँ = विमुखता, क्रोध, नाख़ुशी)


Saturday, November 15, 2008

"नज़र "




"नज़र "
आग फैली इधर से उधर लग गयी,
मेरे घर पे किसी की नज़र लग गयी..
दिल में मायूसियों ने है घर लिया,
अब दुआ भी होने बेअसर लग गयी...



Tuesday, November 11, 2008

शीशा-ऐ-दिल

"शीशा-ऐ-दिल"

ये माना शीशा-ऐ-दिल ,

रौनके-बाज़ारे- उलफ़त है !

मगर जब टूट जाता है,

तो क़ीमत और होती है !!