Saturday, October 24, 2009

" मैं दूंढ लाता हूँ"







" मैं दूंढ लाता हूँ"

अगर उस पार हो तुम " मैं अभी कश्ती से आता हूँ .....
जहाँ हो तुम मुझे आवाज़ दो " मैं दूंढ लाता हूँ"
किसी बस्ती की गलियों में किसी सहरा के आँगन में ...
तुम्हारी खुशबुएँ फैली जहाँ भी हों मैं जाता हूँ
तुम्हारे प्यार की परछाइयों में रुक के जो ठहरे ............
सफर मैं जिंदिगी का ऐसे ख्वाबों से सजाता हूँ
तुम्हारी आरजू ने दर बदर भटका दिया मुझको ............
तुम्हारी जुस्तुजू से अपनी दुनिया को बसाता हूँ
कभी दरया के साहिल पे कभी मोजों की मंजिल पे........
तुम्हें मैं ढूँडने हर हर जगह अपने को पाता हूँ
हवा के दोष पर हो कि पानी की रवानी पे .............
तुम्हारी याद में मैं अपनी हस्ती को भुलाता हूँ
मुझे अब यूँ ने तड़पाओ चली आओ चली आओ ......
चली आओ चली आओ चली आओ चली आओ
अगर उस पार हो तुम " मैं अभी कश्ती से आता हूँ .....
जहाँ हो तुम मुझे आवाज़ दो " मैं दूंढ लाता हूँ"...........

Wednesday, September 9, 2009

"आज"








"आज"
जैसे कुछ दिल बदल गया हो आज,
यार ख़ुद से बहल गया हो आज,

तुम अगर सुन नही रहे हो बात,
मेरा दिल क्यूँ मचल गया हो आज ?

क्या पता खत लिख नही पाता,
या नई चाल चल गया हो आज,

क्यूँ ये मौसम भी खुशगवार नही,
हवा का रुख बदल गया हो आज !

एक नशा था उतर नही पाता,
तेरे रुख से संभल गया हो आज,

क्यूँ ये मुझ से ही हो नहीं पाता,
कोई दिल से निकल गया हो आज !

तुम को चाहा है तुम से प्यार किया,
प्यार सदियों का मिल गया हो आज,

मालिकुल्मौत आए गर दानी,
मौत का वक्त टल गया हो आज
!


http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/S/SeemaGupta/aaj.htm

(http://www.sahityakunj.net/index.htm)

Tuesday, July 14, 2009

"तुम्हें पा रहा हूँ"










"तुम्हें पा रहा हूँ"

तुम्हें खो रहा हूँ तुम्हें पा रहा हूँ,
लगातार ख़ुद को मैं समझा रहा हूँ....

ना जाने अचानक कहाँ मिल गयीं तुम,
मैं दिन रात तुमको हे दोहरा रहा हूँ........

शमा बन के तुम सामने जल रही हो,
मैं परवाना हूँ और जला जा रहा हूँ ....

तुम्हारी जुदाई का ग़म पी रहा हूँ,
युगों से मैं यूँ ही चला जा रहा हूँ...

अभी तो भटकती ही राहों में उलझा,
नहीं जानता मैं कहाँ जा रहा हूँ....

नज़र में मेरे बस तुम्हारा है चेहरा,
नज़र से नज़र में समां जा रहा हूँ......

बेकली बढ़ गयी है सुकून खो गया है,
तुझे याद कर मैं तड़प जा रहा हूँ..........

कहाँ हो छुपी अब तो आ जाओ ना तुम,
मैं आवाज़ देता चला जा रह हूँ ........




Tuesday, May 5, 2009

"मैं"







"मैं "

कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
लफ्जों के हेर फेर ने समझा नहीं मुझे....

कच्ची थी सोंधी ख़ाक में मैं बोलता रहा ,
चाकों के एतबार ने चूप्का किया मुझे...

लौहएमकान का का राज़ था क्यों फाश हो गया ,
कुत्बों के इन्तखाब ने रुसवा किया मुझे ... ..

खारे -चमन था लेकिन चुप चाप जी गया ,
कलियों की बेकली ने तड़पा दिया मुझे ....

Tuesday, April 21, 2009

"निगाहे-नाज़"


"निगाहे-नाज़"

बेज़ारी जान की थी या,
किसी गम की गीरफ्तारी थी,
अंधेरी रात मे भी,
" रोशन रूखे- यार देखा"
शायद ये निगाहे-नाज़ की,
" बीमारी थी"

(बेज़ारी - उदासीनता )
(रूखे- यार - प्रेमिका का चेहरा)
(निगाहे-नाज़ - चंचल आँख)

http://vangmaypatrika.blogspot.com/2008/09/blog-post_13.html

Tuesday, April 7, 2009

"गीत"

"गीत"


मैंने जो गीत तेरे प्यार की खातिर लिखे
आज दुनिया की नज़र उनका पता पाएगी,

किस तरह चाहा है पूजा है सराहा है तुम्हें
प्यार की दुनिया में तारीख लिखी जायेगी..
तेरे चेहरे की तमानत ये सदा देती है
प्यार खिलता है तो चेहरे से अयाँ होता है

कोई जब जन्मो के रिश्तों से बंधा होता है
उसका सम्बन्ध हर एक गाम बयाँ होता है..