"GHAZAL PUBLISHED IN ONE OF FAMOUS LITERARY MAGAZINE "ABHINAV PRAYAS " JULY-SEPT 2012 EDITION (ALIGARH)"
कभी ख्याल में मंज़र जो एक रहता था
वही झुकी हुई शाखें वही दरीचा था
उसी ने फूल खिलाये तमाम खुशियों के
वो मुस्कुराता हुआ जो तुम्हारा लहजा था
किसी की आँखें कहानी सुना रही थीं मुझे
मोहब्बतों का रवां बेजुबान दरिया था
तुम्हारी आँखें समझती थीं दर्द मेरा भी
तुम्हारे दिल से कभी ऐसा एक रिश्ता था
मेरे लबों की ज़मीन पर रवां था नाम उसका
किस अहतियात से वो मेरे दिल में बस्ता था
मुझे तो रोज़ ही मिलने की उस से ख्वाहिश थी
मगर वो 'सीमा' बहुत दूर मुझ से रहता था
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जैसे मुर्दा कर दिया था इश्क के इलज़ाम ने
मुझ में साँसें फूँक दी हैं आप के पैगाम ने
अब्र, आंचल, पेड़, पत्ते, सायबाँ, कुछ भी नहीं
किस जगह ला कर मिलाया है हमें अय्याम ने
तेरे आने की खबर ने देख क्या क्या कर दिया
कितने ही दीपक जला डाले हैं मेरी शाम ने
रात भर जागा किए हैं तेरी यादों के तुफैल,
कितने ख्वाबों को बुना है इस दिले नाकाम ने.
मौत भी नाकाम हो कर लौटती है रोज़ रोज़
मुझको जिंदा जो रखा है इक तुम्हारे नाम ने
3 comments:
सीमाजी बहुहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आई ।और सुंदर गजॉल से मुलाकात हुई ।
तुम्हारी आँखें समझती थीं दर्द मेरा भी
तुम्हारे दिल से कभी ऐसा एक रिश्ता था ।
वाह ।
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