
ये मेरी दीवानगी ,
और उसकी संगदिली ,
रोज मिलने की सजा भी ,
और अदा हो बेदीली

"जूनून-ऐ-इश्क "
जूनून की बात निकली है तो मेरी बात भी सुन लो,
जूनून-ऐ-इश्क सच्चा है तो फिर हारा नहीं करता
मुक़द्दस है जगह वो क्यूंकि घर माशूक का है वो,
कोई मजनूँ कभी भी अपना दिल मारा नहीं करता
तजस्सुस यह के वोह बोलेगा सच या झूट बोलेगा
वो मजनू है और उसके दिल में ही है बसी लैला,
हर एक हूरे नज़र पर अपना दिल वारा नहीं करता