Thursday, July 12, 2012

कभी तिश्नगी का सराब था

kabhi tishnagi ka saraab tha--kabhi zabt-e-gam ki shokhiyaan

badi shaan say jal rahay thay ham--kai aandiyun ka azaab tha

कभी तिश्नगी का  सराब था , कभी ज़ब्त-ए-गम की शोखियाँ
बड़ी शान से जल रहे थे हम,  कई आँधियों का अज़ाब था 



1 comment:

अर्चना तिवारी said...

वाह!! बहुत सुंदर सीमा जी