Wednesday, March 28, 2012

वो कुछ न कुछ तो छुपा रहा है


वो कुछ न कुछ तो छुपा रहा है
हंसी जो लब पर सजा रहा है

वो मेरे आँखों की प्यास बन कर
मुझी से नज़रें चुरा रहा है

उसे मैं अपना कहूँ तो कैसे
जो दिल पे नश्तर चला रहा है

मेरे ख्यालों की चांदनी में
वो चाँद बन कर समां रहा है

मेरी वफ़ा पे यकीं नहीं है
जो मुझ से दमन छुड़ा रहा है

जो मेरी जुल्फों की छाँव में था
घटायें बनकर वो छ रहा है

जितना करती हूँ दूर उस को
वो पास उतना ही आ रहा है

ये चाँद सूरज ज़मीन
तारे
कोई तो इनको चला रहा है


रूठ जाएँगी सारी खुशियाँ
उदास हो कर वो जा रहा है

पनाह में ले ले उसको "सीमा"
बिछड के तुझ से जो जा रहा है


6 comments:

kshama said...

Bade dinon baad aapne kuchh likha hai....bahut khoob!

Mukesh Garg said...

bahut hi sunder , dil ko chuu lene wali har pankti har sabd , dil me utar kar pyar bhar rahi hai...

i like it


regaurds

महेश सोनी said...

excellent, word is flowing like a river.

महेश सोनी said...

excellene, word is flowing like a river.

Shanti Garg said...

बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

Sanju said...

Very nice post.....
Aabhar!